नई पुस्तकें >> नन्हीं मुस्कान नन्हीं मुस्कानआकांक्षा मधुर
|
0 5 पाठक हैं |
ये पत्र एक शिक्षिका द्वारा अपने छात्रों को सम्बोधित करते हुए इस भाव से लिखे गए हैं कि उनमें बसा हुआ प्रेम पल्लवित हो, कुसुमित हो और बचा रहे
पुरोवाक्
बच्चे सच्चे होते हैं, उनमें सांसारिक राग-द्वेष से परे एक अलग ही वात्सल्य-मंदाकिनी अपनी अठखेलियों के साथ लहरें लेती बहती है। चाहे वो इनकी बातें, खेल, हँसी, रुदन हो या जिद, उसमें एक अलग ही पुनीत रसानन्द की अनुभूति होती है।
ऐसे में बालकों में इन प्रकृति प्रदत्त वैयक्तिक गुणों को सहेजने के साथ ही नूतन सामाजिक दायित्वों और सद् गुणों का रोपण करना एक सावधानीपूर्ण और गुरुतर दायित्व है। शिक्षक इस कार्य को बखूबी पूर्ण करता है, इसी अर्थ में उसकी गुरु संज्ञा अन्वर्थ है। विदुषी लेखिका एक शिक्षिका होते हुए बाल मनोविज्ञान की भी गहन अनुभूति रखती हैं, यह पुस्तक के पठनोपरान्त पाठक सहज ही जान जायेंगे। पत्र- लेखन भाव-संवाद का एक सशक्त माध्यम है, जिसमं लेखक और पाठक एक सूत्र में एकाकार होते हैं और प्रेषित भाव पंक्तियों के माध्यम से अन्त:स्थल में उतरता है।
प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से उन्होंने बाल मन के संस्करण और परिमार्जन हेतु एक अद्वितीय प्रयास किया है। आशा है इस कृति को हिंदी की बाल संस्कारशाला में योग्य स्थान मिलेगा।
शुभकामनाओं सहित।
हनुमान जयंती विक्रमी २०७९
डॉ. दुर्गेश पाण्डेय
(प्रवक्ता, संस्कृत)
जे.आई.सी. सहपऊ, हाथरस।
|
- समर्पण
- आभार
- पुरोवाक्
- अनुक्रमणिका